poetry

सपने

भरती हु आसमान को अपनी बाहों में बादलों के कंधे पर सवारी करती हु लग जाते है पहिये पैरो में जब मैं हवाओं को पकड़ती हु उछलती- कूदती, खेलती हु मैं इंद्रधुनष के आंगन में फूलों के गोद में सोती हु उग आते है पंख मेरे जब मैं चिडिओं को गाते सुनती हु पकड़ती- छोड़ती, डूबती हु मैं सूरज की किरणों में झरने के पानी को बारिश बनाती हु तो खुल जाती है आंख मेरी…

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