poetry

ख़ामोशी

तू खामोश है इतनी, जीतनी मैं संगीत के गहरे शब्द सुनती हू तू रहती है हमेशा पास में दोपहर में आते उस खूबसूरत सपने के जैसी अब प्यार का इजहार करू भी कैसे मैं तू भी खामोश है मैं भी खामोश हूं दिवार पे टंगी उस तस्वीरों जैसी तू भी अब नजरे मिला मुझसे मैं भी ख़ाब सजाऊं तेरे जैसे दूर कही घास पे हम चल रहे हो मेरी हाथो में चल रही इस स्याहि…

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