poetry

अनिद्रा (sleepless)

कच्चे धागे से बंधी आँखों सेजलती है कभी दिए की लौ मेंकभी घुल जाति है काली रौशनी मेंकुछ लोग घूमते दीखते है उस बड़े से खेत मेंजब मैं खो जाती हु उस भिड़ मेंतो उड़ जाती है नींद मेरी उस बहते हवा के झोके में काले, सफ़ेद दो पहलुओं में बंधी पलकों सेटूट कर बिखर जाती है इस छोटे से घर मेंसिमट जाती है खुद में हीकभी वो लोग बैठ कर दोहराते है बाते वहीजब…

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