poetry

खास (Special)

दिल टूटता है उसका मगर रोती नहीं है खामोश रहती है मगर सोती नहीं है उलझती रहती है पहेली की तरह खुद में ही सुलझाती हूँ मगर सुलझती नहीं है नादान सी वो खुद को कमजोर समझती है सहती है सब कुछ फिर भी कुछ कहती नहीं है जीती है टुकड़ो में, टुकड़ो में ही रहती है समझाती हूँ हर रोज की कितनी खास है वो फिर भी समझती नहीं है | Her heart breaks…

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