poetry

काली सफ़ेद दुनिया

काला आसमान,सफ़ेद सी चिड़ियाऔर मैं गाढ़ी नीली स्याहीजा कर मिलती हु उस गहरी काली नदी मेंवो सफ़ेद चिड़िया जब उड़ाती है आसमान मेंकभी लगती है चाँद सीतो कभी चुभती है आँखों मेंमिट्टी से बने मेरे खिड़की के परदेउससे झाकती और कहती है मुझसेएक पंख दूभरो रंग इसमेंऔर मैं स्याही उसको छूती कैसेरंग भरती कैसेमैं स्याही नीलीपिघलती और बहतीऔर वो मुझे खुद में ही समेटतीफिर मैं उसमे समा गई औरवो भी पूरी नीली हो गईजब वो…

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