poetry

मामूली मैं

मामूली मैं तेरे प्यार में खुद को आसमान समझती हु छोटा सा घरोंदा मेरा उसको भी आलीशान समझती हु जो तू पहनती है पायल उसको मैं अपने सर का ताज़ समझती हु जो तू दिए जलाये मैं उनको अपनी खुशिओ का रोशनदान समझती हु समझती हुँ सारी तेरी बातें कहती हु मैं भी सबकुछ लेकिन बस दूर से क्युकी तुमको सपना और खुद को हकीकत समझती हु मामूली मैं तेरे प्यार में खुद को आसमान…

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