उन खिड़कियों से परदे हट जाते है, जब भी
वो हवाएं प्यार जताती है
हसना, मुस्कुराना उन खुलती जुल्फों से खेल जाना
धीरे से इन होठो को छू कर कुछ कह जाती है
पहले इन दरवाजो पे बहोत दिन हो जाते थे , दस्तक दिए हुए किसीके
अब तो रोज दरवाजे पे लगी घंटिया बज ही जाती है
कितना खुद को अकेले राखु मै, कितना खुद को छुपाऊ
जितना भी छुपती हु, मेरे कानो में वो कुछ बोल ही जाती है
उन खिड़कियों से————————-
जब भी हवाएं प्यार जताती है |