मैं तुम्हारी परछाई हु
तुम मेरे समंदर हो
तुम जहां तक अपनी बाजुओं को फैलाते हो
मैं भी अपनी बाहें वहां तक फैलाती हूँ
वो अजनबी बैठे रेत पर कहते है
शश———-
सुनो समंदर की आवाज कितनी सुनहरी है
लेकिन उसे नहीं पता ये हम दोनों है जो बाते करते है
जब भी हमारे बिच तकरार होती है
तब तब ज्वर- भाटे आते है
वो चाँद इस बात का अभिलेख रखता है
वो दो लोग फिर यहां आये है
बाँहों में बाहें डाले खड़े है समंदर के किनारे
तुम भी उनके पैर भिगोते हो
और मैं तुम्हे वापस खींच लेती हूँ
फिर से मैं बोलती हु
मैं तुम्हारी परछाई हु
तुम मेरे संदर हो
मत सुनने दो हमरी बाते उन अजनबियों को
मत छुओ उन लोगो को
बस मेरे साथ ही रहो हमेसा के लिए
जहा तुम बहो वही मैं भी बहुं
जो तुम कहो वो मैं भी कहु
इतनी सी ख्वाहिश है मेरी
क्युकी
मैं तुम्हारी परछाई हु
तुम मेरे समंदर हो|