poetry

राख सी मिट्टी

राख सी उड़ती मिट्टी जीना भूल गई उठाना भूल गई, लड़ना भूल गई, और पिघलना भी भूल गई कोई आस रही नहीं, कोई ख्वाहिश बची नहीं वो धड़कते हुए दिल भी खो गए इस जहाँ में बादल भी उड़ाते बिखरते कही और चले उसकी तलाश में अब वो मिल गई है उस धुएं में तो रुकेगी नहीं, वो कभी वापस लौटेगी नहीं राख सी उड़ाती मिट्टी जीना भूल गई नदियों को बुलाना भूल गई, उन…

Continue reading

poetry

जिंदगी

ये जिंदगी और कुछ नहीं , मेरा ही किस्सा है दोहरा कर जिऊँ या फिर एक बार सब एक ही जैसा है दिल निकल आया है हांथो में और आग लिपट जाती है आँखो से जब भी जीने का जूनून छाता है सपने लिए उड़ती हूँ मैं कही गिर न जाऊ इसका भी ख्याल आता है कभी बड़ी लगती है ये जिंदगी, तो कभी लगती है छोटी इतनी ख्वाहिशें है , कोई पीछे न छूट…

Continue reading