poetry

WOMEN

She saidI don’t know if I’m dead or aliveplease let me know when you bury meI don’t feel the excitement or any sensationscut my skin with a knife, that can feel bothI don’t know what to choose and what to regretplease act like me in front of otherslaughing and crying is the only thing I knowI can laugh easily over a minimalistic jokeand cry if a baby criesI don’t know a word or a sentence…

Continue reading

poetry

मैं तुम्हारी परछाई

मैं तुम्हारी परछाई हु तुम मेरे समंदर हो तुम जहां तक अपनी बाजुओं को फैलाते हो मैं भी अपनी बाहें वहां तक फैलाती हूँ वो अजनबी बैठे रेत पर कहते है शश———- सुनो समंदर की आवाज कितनी सुनहरी है लेकिन उसे नहीं पता ये हम दोनों है जो बाते करते है जब भी हमारे बिच तकरार होती है तब तब ज्वर- भाटे आते है वो चाँद इस बात का अभिलेख रखता है वो दो लोग…

Continue reading

poetry

EDUCATION

Schools, colleges, and universities,Fruits that ripen in the moonlight’s reverie.Cherry blossom’s fruits, shining on dead petals,Their sweet scent spreads, crossing all the world’s vessels. In the garden, warmth and snow entwine,Tested by the fruit, a trial divine.My heart, lungs, mind, and soul paid the price,To taste the fruit, to see its paradise. But when I reached that far and tasted,The fruit was rotten, its beauty wasted.Its scent now unpleasant, its glory gone,The test of the…

Continue reading

poetry

अतीत (Past)

जीती हु उस परछाई में कभी पेड़ों के तो कभी दरवाजो के पीछे आंखे खोलना भूल जाती हु रूठती हु खुदसे, डूबती हु खुदमे बहार निकलना भूल जाती हु आते है लमहे हाथों में आज भी बस मुट्ठी बंद करना भूल जाती हु दौड़ती हु जब भी उनके पीछे तो रुकना भूल जाती हु बदलती हु चेहरे हजार, फिर भी आईना देखना भूल जाती हूँ इंतजार करती हु किसी का कभी इस जगह तो कभी…

Continue reading

poetry

पुराने मकान

आज फिर उस गली से गुजारी हूँ मैं, वो पुराने मकान आज भी वही खड़े हैं वही पुरानी खिड़किया झांकती हुई वही खामोश हवाएं अंदर से बहार आती, जाती हुई बहोत दिन हो गए है एक दूसरे से कुछ कहे, कुछ सुने अब जब हम एक दूसरे के सामने खड़े है तो हम दोनों ही चुप है उनके मन में भी सवाल बहोत हैं मुझे भी कहना बहोत कुछ हैं फिर भी ना उन्होने कुछ…

Continue reading

poetry

लाल बिंदी

नदी में बहती हुई बिंदी कभी पथरो से टकरा कर घायल हुई तो कभी झरने के पानी को पी कर निहाल हुई बहते हुए पत्ते पे कभी सवार हुई कही अटकी तो कभी पार हुई उस हिरे के टुकड़े को जड़ लिया खुद पे, तो भीग के भी चमक उठी पंछीओ ने उसकी खूबसूरती को पाना चाहा तो सभी पंछीओ में तकरार हुई आखिरी में लगी हाथ एक गौरैया के तो गौरैया उसे उड़ा ले…

Continue reading

poetry

राख सी मिट्टी

राख सी उड़ती मिट्टी जीना भूल गई उठाना भूल गई, लड़ना भूल गई, और पिघलना भी भूल गई कोई आस रही नहीं, कोई ख्वाहिश बची नहीं वो धड़कते हुए दिल भी खो गए इस जहाँ में बादल भी उड़ाते बिखरते कही और चले उसकी तलाश में अब वो मिल गई है उस धुएं में तो रुकेगी नहीं, वो कभी वापस लौटेगी नहीं राख सी उड़ाती मिट्टी जीना भूल गई नदियों को बुलाना भूल गई, उन…

Continue reading

poetry

जिंदगी

ये जिंदगी और कुछ नहीं , मेरा ही किस्सा है दोहरा कर जिऊँ या फिर एक बार सब एक ही जैसा है दिल निकल आया है हांथो में और आग लिपट जाती है आँखो से जब भी जीने का जूनून छाता है सपने लिए उड़ती हूँ मैं कही गिर न जाऊ इसका भी ख्याल आता है कभी बड़ी लगती है ये जिंदगी, तो कभी लगती है छोटी इतनी ख्वाहिशें है , कोई पीछे न छूट…

Continue reading

poetry

The oversea war

I don’t know to whom I should standI don’t know for whom I should crythose unhealthy and unfamiliar howlshitting me hardI should say something, I should do somethingbut not todaybecause it’s overwhelming, it feels like I will diethis oversea fight, still I can seepeople are lurking under the depth of the crowdthat painless body, hurting chest and teary eyesI don’t know what to sayI don’t know for whom I should praytheir voices piercing into my…

Continue reading

poetry

याद है मुझे

याद है मुझे वो मिटटी के घर और उनपे सजे छज्जे याद है मुझे वो छोटा सा आंगन और उसमे बिखरे तुलसी के पत्ते वो छोटी सी फुलवारी, वो मम्मी की साड़ी हा मुझे याद है वो हमारी पाठ पे छोटे छोटे से बास्ते कुछ बर्तनो के शोर, कुछ लोगो के सटे हुए चेहरे वो छोटी – छोटी खेतो की क्यारी, वो पापा की साइकिल की सवारी हा सब याद है मुझे याद है मुझे…

Continue reading