poetry

समय

मैं ठहरी हुई, ये समय भागता हुआ कैसे इसे पकडू मैं आंखे धुंधली हैं, पैरों में कांटे चुभे हैं ये दर्द कैसे सहुँ मैं दुनिया बोलती है जी लो तुम इस समय में लेकिन कल की फ़िक्र कैसे छोड़ू मैं वो धुंधली सी बाते जाने अनजाने जेहन में घूमती रहती हैं रोज तो रातो को कैसे सोउ मैं कोई नसीहत दे जाता हैं इस समय के इस्तेमाल का लेकिन ये बताता नहीं की इसपे अपनी…

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अब मन नहीं है ( I don’t feel like it anymore )

रहने दू अब ये काम काजअब कुछ करने का मन नहीं हैसो जाऊ पलंग के निचेऊपर धुप बड़ी हैऔर अब जलने का मन नहीं है मन करता है आंखे खोल कर झपकी लेने काअब सपने देखने का मन नहीं हैदेखु भी क्या इनमेये सपने कभी मेरे हुए नहीं है दुनिया खूबसूरत है, बहोत रंगीन हैलेकिन फिर भी इसको अब देखने का मन नहीं हैचाहु भी क्या इससेआखिर ये भी तो उतनी ही मतलबी है रूठ…

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