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तलाश

ना जाने किस चीज की तलाश है मुझे चिड़ियों को तैरते देखने का या फिर मछलियों की सवारी करने का नदी को एक घूंट में पिने का या फिर समुन्दर को बोतल में भरने का अब तो सूरज भी जलाता है मुझे ये एहसास दिलाता है की वो भी है यहां फिर भी ना जाने किस चीज की तलाश हैं मुझे झरने को ऊपर उठाते देखने का या फिर मोरों को गाते सुनने का भवरों…

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हा मैं खूबसूतर हु

लौट कर आई हु अभी उस महफ़िल से जोरो – शोर पे था मेरे बाल के गजरे का महक माथे की बिंदी उस सूरज से काम न थी मैंने खूब सजाया था इन आँखों को काजल से , होठों को भो रंगा था लाल गुलाब की तरह वो मोती से भरी मेरी साड़ी भी सितारे की तरह चमक रही थी अब वापस आकर उतार दिए है वो सितारे, हटा दिया हैं होठों से गुलाब पोछ…

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