poetry

लाल बिंदी

नदी में बहती हुई बिंदी कभी पथरो से टकरा कर घायल हुई तो कभी झरने के पानी को पी कर निहाल हुई बहते हुए पत्ते पे कभी सवार हुई कही अटकी तो कभी पार हुई उस हिरे के टुकड़े को जड़ लिया खुद पे, तो भीग के भी चमक उठी पंछीओ ने उसकी खूबसूरती को पाना चाहा तो सभी पंछीओ में तकरार हुई आखिरी में लगी हाथ एक गौरैया के तो गौरैया उसे उड़ा ले…

Continue reading