poetry

पत्ते (The love story of leaves)

बितते – बितते बीत गया वो समय भी जब दीवानो की तरह पत्ते झल्ला कर भी सूरज को देखते थे छाव तो कही नसीब की गलियों में गुम थी तो गिर जाते थे टूट कर ही हवा भी छेड़ती थी उनको हर बार जब भी अति थी कुछ तो बह जाते थे उसमे ही आंखे बंद करते भी कब सूरज की आशिकी और चाँद की दीवानगी इतनी खूबसूरत जो थी अब जब बादल बरसे है…

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