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हा मैं खूबसूतर हु

लौट कर आई हु अभी उस महफ़िल से जोरो – शोर पे था मेरे बाल के गजरे का महक माथे की बिंदी उस सूरज से काम न थी मैंने खूब सजाया था इन आँखों को काजल से , होठों को भो रंगा था लाल गुलाब की तरह वो मोती से भरी मेरी साड़ी भी सितारे की तरह चमक रही थी अब वापस आकर उतार दिए है वो सितारे, हटा दिया हैं होठों से गुलाब पोछ…

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मैं

अब नई जिंदगी की शुरुआत करना चाहती हु मैं झूटी ही सही सबकी बाते सुनना चाहती हु मैं आंखे खोल के ही सही सपने देखना चाहती मैं अब नई जिंदगी की शुरुआत करना चाहती हु मैं —— बिना पारो के ही आसमान में उड़ना चाहती हु मैं रात के अँधेरे में सपनो की दुनिया देखना चाहती हु मैं ख्वाहिशो को लेकर इस भीड़ में चलना चाहती हु मैं अब नई जिंदगी की शुरुआत करना चाहती…

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