poetry

राख सी मिट्टी

राख सी उड़ती मिट्टी जीना भूल गई उठाना भूल गई, लड़ना भूल गई, और पिघलना भी भूल गई कोई आस रही नहीं, कोई ख्वाहिश बची नहीं वो धड़कते हुए दिल भी खो गए इस जहाँ में बादल भी उड़ाते बिखरते कही और चले उसकी तलाश में अब वो मिल गई है उस धुएं में तो रुकेगी नहीं, वो कभी वापस लौटेगी नहीं राख सी उड़ाती मिट्टी जीना भूल गई नदियों को बुलाना भूल गई, उन…

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