poetry

पुराने मकान

आज फिर उस गली से गुजारी हूँ मैं, वो पुराने मकान आज भी वही खड़े हैं वही पुरानी खिड़किया झांकती हुई वही खामोश हवाएं अंदर से बहार आती, जाती हुई बहोत दिन हो गए है एक दूसरे से कुछ कहे, कुछ सुने अब जब हम एक दूसरे के सामने खड़े है तो हम दोनों ही चुप है उनके मन में भी सवाल बहोत हैं मुझे भी कहना बहोत कुछ हैं फिर भी ना उन्होने कुछ…

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