poetry

सितारा

उस शांत से समंदर में डूबता हुआ एक सितारा चकता है सन्नाटे चारों तरफ के खुद में ही बटोरता है अपने अकेलेपन का भोझ कैसे सहे चमकता है फिर भी अकेला है घर कहाँ है, दुब गया या कही किसी किनारे पे खड़ा है वो नाव अकेले कहाँ गई, ये बात किसको ही पता है अपने इस दर्द को कब तक सहे हर बार उसका मन उससे ये पूछता है बहता हुआ पानी और सूखती…

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