काला आसमान,सफ़ेद सी चिड़िया
और मैं गाढ़ी नीली स्याही
जा कर मिलती हु उस गहरी काली नदी में
वो सफ़ेद चिड़िया जब उड़ाती है आसमान में
कभी लगती है चाँद सी
तो कभी चुभती है आँखों में
मिट्टी से बने मेरे खिड़की के परदे
उससे झाकती और कहती है मुझसे
एक पंख दू
भरो रंग इसमें
और मैं स्याही उसको छूती कैसे
रंग भरती कैसे
मैं स्याही नीली
पिघलती और बहती
और वो मुझे खुद में ही समेटती
फिर मैं उसमे समा गई और
वो भी पूरी नीली हो गई
जब वो मुझे लेकर उड़ी आसमन में
हमने मिलकर काले आसमान को नीला कर दिया|
कभी कभी हम नए बदलाव से इतना डरते है, कभी कभी हम नए रिश्ते बनाने से इतना डरते है, नई चीजे देखने सिखने से इतना डरते है की हम खुद को बदकिस्मत मान लेते है, तो मैं बस यही कहना चाहती हु की जब तक हम खुद पर भरोसा कर के खुद को मौका नहीं देंगे, तब तक हम वो काले असमना नीला कैसे बनायेगे?
तो ज्यादा ना सोचे खुद को मौका नयी चीजे अनुभव करने का|