poetry

पत्ते (The love story of leaves)

बितते – बितते बीत गया वो समय भी

जब दीवानो की तरह पत्ते झल्ला कर भी सूरज को देखते थे

छाव तो कही नसीब की गलियों में गुम थी

तो गिर जाते थे टूट कर ही

हवा भी छेड़ती थी उनको हर बार जब भी अति थी

कुछ तो बह जाते थे उसमे ही

आंखे बंद करते भी कब

सूरज की आशिकी और चाँद की दीवानगी इतनी खूबसूरत जो थी

अब जब बादल बरसे है तो उनके दिल के भी सितार बज गए हैं

तो नाचते हुए बूंदो के साथ वो भी थिरक रहे है

अब बस कल के तितलियों से मिलने का इंतजार है उन्हें

इस खूबसरत सी दुनिया में बस उनसे ही मुलाकात बाकी है

ये पत्ते झूठे नहीं बल्कि आशिक है सबके ही |

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *