poetry

वो और मैं

उसकी आँखे जब भी मेरी आँखों को छूती है
उसका दर्द मेरे दिल में अंगड़ाइयां लेने लगता है
जब भी वो अपनी आदते बदलती है
मैं भी उसके साथ बदल जाती हु
वो पूछ नहीं पाती है सवालों को
वो कह नहीं पाती है अपनी बातो को
मैं भी झिझक जाती हु पूछने से
की क्या चुभा अभी उसके मन में
जब भी वो सपने देखती है
मैं भी यहां सो जाती हु
जब भी मिलती है मुझसे कुछ कहती है कुछ भूल जाती है
और मैं भी बस सुनती हु और सुनती ही जाती हु|

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