भरती हु आसमान को अपनी बाहों में
बादलों के कंधे पर सवारी करती हु
लग जाते है पहिये पैरो में जब मैं हवाओं को पकड़ती हु
उछलती- कूदती, खेलती हु मैं
इंद्रधुनष के आंगन में
फूलों के गोद में सोती हु
उग आते है पंख मेरे जब मैं चिडिओं को गाते सुनती हु
पकड़ती- छोड़ती, डूबती हु मैं
सूरज की किरणों में
झरने के पानी को बारिश बनाती हु
तो खुल जाती है आंख मेरी जब मैं बिस्तर से गिरती हु|