उस शांत से समंदर में डूबता हुआ एक सितारा चकता है
सन्नाटे चारों तरफ के खुद में ही बटोरता है
अपने अकेलेपन का भोझ कैसे सहे
चमकता है फिर भी अकेला है
घर कहाँ है, दुब गया या कही किसी किनारे पे खड़ा है
वो नाव अकेले कहाँ गई, ये बात किसको ही पता है
अपने इस दर्द को कब तक सहे
हर बार उसका मन उससे ये पूछता है
बहता हुआ पानी और सूखती हुई प्यास का बनता बिगड़ता एक अलग ही नाता है
सोया हुआ है चाँद भी जैसे सदियों से सोया नहीं है
अब ये दुनिया उसकी आँखों में चुभने सी लगी है
फिर भी चमकता है, बहता है और खुद का रस्ता ढूढ़ता रहता है |