poetry

पुराने मकान

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आज फिर उस गली से गुजारी हूँ मैं, वो पुराने मकान आज भी वही खड़े हैं

वही पुरानी खिड़किया झांकती हुई

वही खामोश हवाएं अंदर से बहार आती, जाती हुई

बहोत दिन हो गए है एक दूसरे से कुछ कहे, कुछ सुने

अब जब हम एक दूसरे के सामने खड़े है तो हम दोनों ही चुप है

उनके मन में भी सवाल बहोत हैं

मुझे भी कहना बहोत कुछ हैं

फिर भी ना उन्होने कुछ कहा ना ही मैं कुछ बोली

बस दोनों ठहरे रह गए उस खामोसी में

वो तो इंतजार में आज भी वही ठहरे हुए हैं

बस मैं समय के साथ दूर उड़ गई थी कही

आज जब वापस मिले है

तो खामोश होकर उन बोते दिनों में खोये हुए है

आज फिर उस गली से गुजारी हूँ मैं, वो पुराने मकान आज भी वही खड़े हैं |

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