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नदी में बहती हुई बिंदी कभी पथरो से टकरा कर घायल हुई
तो कभी झरने के पानी को पी कर निहाल हुई
बहते हुए पत्ते पे कभी सवार हुई
कही अटकी तो कभी पार हुई
उस हिरे के टुकड़े को जड़ लिया खुद पे, तो भीग के भी चमक उठी
पंछीओ ने उसकी खूबसूरती को पाना चाहा तो
सभी पंछीओ में तकरार हुई
आखिरी में लगी हाथ एक गौरैया के
तो गौरैया उसे उड़ा ले गई
सब उसे लेकर उड़े ऊंचे से ऊंचे
तो भारी बरसात हुई
सब रंग गए उस बिंदी के रंग में, पंछी, नदी, और आसमान भी
तो वो मुस्कुराई और बोली देखो पूरी दुनिया लाल गई |