poetry

सितारा

उस शांत से समंदर में डूबता हुआ एक सितारा चकता है

सन्नाटे चारों तरफ के खुद में ही बटोरता है

अपने अकेलेपन का भोझ कैसे सहे

चमकता है फिर भी अकेला है

घर कहाँ है, दुब गया या कही किसी किनारे पे खड़ा है

वो नाव अकेले कहाँ गई, ये बात किसको ही पता है

अपने इस दर्द को कब तक सहे

हर बार उसका मन उससे ये पूछता है

बहता हुआ पानी और सूखती हुई प्यास का बनता बिगड़ता एक अलग ही नाता है

सोया हुआ है चाँद भी जैसे सदियों से सोया नहीं है

अब ये दुनिया उसकी आँखों में चुभने सी लगी है

फिर भी चमकता है, बहता है और खुद का रस्ता ढूढ़ता रहता है |

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