मैं और तुम
बिच में सरहद की दिवार खड़ी है
मैं यहां और तुम वहां पे
हर बात पे जीकर है तुम्हारा और मेरी हर याद है तुम्हारे साथ
जब भी हवा चलती है बादलों को लेकर वहां से
असमन में लहरे उमड़ने लगती है यहां पे
जब भी बारिश जाती है यहां से
फूल ही फूल खिल जाते है वहां पे
मेरी भी चिठियों में बाते लिखी होती है वही, जो तुम्हारे लिए भी खास है
जब भी मौसम बदलते है वहां पे
सारे पेड़ अंगड़ाइयाँ लेते है यहां पे
जब भी कोई तारा टूटता है यहाँ पे
ख्वाहिशें पूरी होती हैं वहां पे
लेकिन फिर भी इंतजार है इस दीवाल के टूटने का यहां भी और वहां भी
कैसे रहे अब
मैं यहां और तुम वहां पे।