poetry

जिंदगी

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ये जिंदगी और कुछ नहीं , मेरा ही किस्सा है

दोहरा कर जिऊँ या फिर एक बार सब एक ही जैसा है

दिल निकल आया है हांथो में और आग लिपट जाती है आँखो से

जब भी जीने का जूनून छाता है

सपने लिए उड़ती हूँ मैं

कही गिर न जाऊ इसका भी ख्याल आता है

कभी बड़ी लगती है ये जिंदगी, तो कभी लगती है छोटी

इतनी ख्वाहिशें है , कोई पीछे न छूट जाये इस ख्याल से दिल डरता है

अब तो दोस्ती का हाथ बढ़ा लेती हूँ अजनबियों से भी

क्या पता किसका मन अभी भी अकेला सोता है

ये जिंदगी और कुछ नहीं मेरा ही किस्सा है——

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