poetry

मैं और तुम

मैं और तुम

बिच में सरहद की दिवार खड़ी है

मैं यहां और तुम वहां पे

हर बात पे जीकर है तुम्हारा और मेरी हर याद है तुम्हारे साथ

जब भी हवा चलती है बादलों को लेकर वहां से

असमन में लहरे उमड़ने लगती है यहां पे

जब भी बारिश जाती है यहां से

फूल ही फूल खिल जाते है वहां पे

मेरी भी चिठियों में बाते लिखी होती है वही, जो तुम्हारे लिए भी खास है

जब भी मौसम बदलते है वहां पे

सारे पेड़ अंगड़ाइयाँ लेते है यहां पे

जब भी कोई तारा टूटता है यहाँ पे

ख्वाहिशें पूरी होती हैं वहां पे

लेकिन फिर भी इंतजार है इस दीवाल के टूटने का यहां भी और वहां भी

कैसे रहे अब

मैं यहां और तुम वहां पे।

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