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लौट कर आई हु अभी उस महफ़िल से
जोरो – शोर पे था मेरे बाल के गजरे का महक
माथे की बिंदी उस सूरज से काम न थी
मैंने खूब सजाया था इन आँखों को काजल से ,
होठों को भो रंगा था लाल गुलाब की तरह
वो मोती से भरी मेरी साड़ी भी सितारे की तरह चमक रही थी
अब वापस आकर उतार दिए है वो सितारे, हटा दिया हैं होठों से गुलाब
पोछ दिए है काजल, बिंदी भी निकल दिया है
गजरे की महक भी फीकी पड़ चुकी है
सरे श्रृंगार उतर कर बैठी हु अपने आईने के सामने तो
एहसास हुआ
वो महफ़िल के लोग कभी जान नहीं पाएंगे की मैं बिना इन सब के भी कितनी खूबसूरत दिखती हु
है मैं खूबसूरत हूँ |