जब भी आना कुछ बाते, कुछ वादे लेते आना
कुछ अपने शहर की गर्मी, कुछ शर्दी लेते आना
यहां अभी भी घूमते है कुछ पराये लोग
मैं तुम्हारी और तुम इनके बन जाना
जब भी आना कुछ अपने शहर की मिट्टी, कुछ अपने खेत की हरियाली लेते आना
कुछ अपने घर की गूंजती हसी और वो तुलसी भी लेते आना
ये आंगन अभी भी सुना है
इठलाऊँगी मैं इसमें और तुम भी सुकून से सो जाना
जब भी आना कुछ उस छज्जे की ताकत और कुछ दीवारों की आहट लेते आना
कुछ रहत का समय, कुछ सुकून के पल लेते आना
ये घर आज भी खड़ा है खुले आसमान के निचे
मैं बनुगी दिवार तो तुम इस घर की छत बन जाना
जब भी आना वहां से कुछ फूलो की खुशबु , कुछ बारिश के बादल लेते आना
कुछ जगमगाते तारे और वो गुनगुनाती हुई नदी भी लेते आना
यहां ये आँखे अभी भी खाली है
मैं देखूँगी तुम्हे और तुम इन आँखों में ही रह जाना|
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for putting up.Blog range
Thank you so much for your kind words!